________________
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष ( भाग 6 पृ. 331)
आचारांग 2/3
भय का प्रसंग आनेपर भयभीत व्यक्ति भयाविष्ट होकर असत्य
-
बोल देता है ।
251. हास्य से मिथ्याभाषण
हासापत्ते हासी समावइज्जा मोसं वयणाए ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पं. 331] आचारांग - 2/3
हँसी-मजाक का प्रसंग आने पर हँसी करने वाला व्यक्ति हास्यवश झूठ बोल देता है।
252. त्रिविध-मूर्ख
तिविहा मूढा पण्णता तं जहा - णाणमूढा, दंसणमूढा, चरित्तमूढा ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 337] स्थानांग - 3/4/203
मूर्ख तीन प्रकार के कहे गए हैं- ज्ञान से मूर्ख (ज्ञानहीन), दर्शन से मूर्ख (श्रद्धाहीन) और चारित्र से मूर्ख ( आचरणहीन ) ।
-
253. मृत्यु - मूल
मरणस्य मूलं दुःखं ।
-
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 337] उत्तराध्ययन सटीक - 32 अ.
मृत्यु का मूल दुःख हैं । 254. अकल्प भी कल्प
णाणातिकारणावेक्ख अकप्पसेवणा कप्पा |
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 340 ] निशीथ चूर्णि 92
ज्ञानादि की अपेक्षा से किया जानेवाला अकल्प सेवन भी कल्प है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 118
-