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________________ 241. निर्लोभता लोभो न सेवियव्वो । 242. क्रोधी - लोभ मत करो । कुद्धो चंडिक्किओ मणूसो अलियं भणेज्ज । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष (भाग 6 पृ. 331) प्रश्नव्याकरण 2/1/25 श्री अभिधान राजेन्द्र कोष (भाग 6 पृ. 331) प्रश्नव्याकरण 2/1/25 क्रोधी मनुष्य रौद्रस्वभावी बन जाता है और ऐसी स्थिति में वह - मिथ्याभाषण करता है । 243. लोभी - लालची प्रवृत्ति करता है । लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ईड्ढीए व सोक्खस्स व काण । प्रश्नव्याकरण 2/7/25 लोभी- लालची मनुष्य ऋद्धि-वैभव और सुख केलिए मिथ्याभाषण श्री अभिधान राजेन्द्र कोष (भाग 6 पृ. 331 ) .. 244. हास्य में निन्दा प्रिय - पर परिवायप्पियं च हासं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष ( भाग 6 पृ. 331) प्रश्नव्याकरण 2/1/25 हास्य- परिहास में परकीय निन्दा - तिरस्कार ही प्रिय लगता है । 245. हास्य - वर्जन हास ण सेवियव्वं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष ( भाग 6 पृ. 331) अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-6 • 116
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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