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________________ - आचारांग - 23 क्रोध का कुटु फल जानकर उसका परित्याग कर देता है, वह निर्ग्रन्थ है। 232. असत्य से दूषित वचन अणणुवीयि भासी से णिग्गंथे समावज्जिज्जा मोसं वयणाए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 330] - आचारांग -23453 जो निर्ग्रन्थ विचारपूर्वक नहीं बोलता है, उसका वचन कभी-नकभी असत्य से दूषित हो सकता है । 233. हित-मित प्रिय ! सच्चं च हियं च मियं च गाहगं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 330] - प्रश्नव्याकरण - 24/25 ऐसा सत्यवचन बोलना चाहिए, जो हित-मित और ग्राह्य हो । 234. असत्य कब ? कोहाप्पत्ते-कोही तं समावइज्जा मोसं वयणाए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 330] - आचारांग 28 क्रोध का प्रसंग आने पर क्रोधी व्यक्ति आवेशवश असत्य वचन बोल देता है। 35. क्रोधान्ध कुद्धो...........सच्चं सीलं विणयं हणेज्ज ।। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 331] - प्रश्नव्याकरण 2125 क्रोध में अंधा हुआ व्यक्ति सत्य, शील और विनय का नाश कर डालता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 114
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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