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________________ 227. प्रिय- सत्य बोलो प्रियं सत्यं वाक्यं हरति हृदयं कस्य न जने ? गिरं सत्यां लोकः प्रतिपदमिमामर्थयति च ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 328] प्रश्नव्याकरण - आगमीय सूक्तावली पृ. 34 प्रिय सत्यवचन किसके मन को आकर्षित नहीं करता ? अर्थात् सभी को मोहित करता है। यह लोक प्रचलित वाणी संसार में कदम-कदम पर सार्थक होती है । 228. सत्य से बढ़कर नहीं ! सत्याद् वाक्याद् व्रतमभिमतं नास्ति भुवने ? श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 328] प्रश्नाव्याकरण - आगमीय सूक्तावली पृ. 34 सत्यवचन से बढ़कर इस संसार में अन्य कोई व्रत नहीं है । - - 229. निर्ग्रन्थ कौन ? अणुवीयभासी से णिग्गंथे । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 330] आचारांग 2/3/5/2 जो विचारपूर्वक बोलता है, वही सच्चा निर्ग्रन्थ है । - - 230. बोलो, परपीड़ाकारक नहीं णय परस्स पीडाकरं सावज्जं । WYN श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 330] प्रश्नव्याकरण 2/7/25 पर को पीड़ा उत्पन्न करनेवाला पापयुक्त वचन मत बोलो । 231. क्रोधजेता निर्ग्रन्थ कोहं परिजाणइ से णिग्गंथे । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 330 ] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 113 -
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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