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195. अन्योन्याश्रित क्या ?
ज सम्मत्तं पासह, तं मोणं पासह । जं मोणं पासह, तं सम्मतं पासह ॥
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जो सम्यक्त्व को देखता है, वह मुनित्व को देखता है । जो मुनित्व को देखता है, वह सम्यक्त्व को देखता है ।
196. समत्वदर्शी
पंतं लूहं सेवंति वीरा सम्मत्तदंसिणो ।
सेवन करते हैं ।
197. मौन
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 309] एवं [भाग 7 पृ. 737] आचारांग 12/6/99
1//5/3/155
समत्वदर्शी वीर साधक रुखे-सूखे नीरस आहार का समतापूर्वक
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 309] आचारांग 1/5/3/155
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मुणी मोणं समायाय धुणे कम्मसरीरगं ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 309] एवं [भाग 7 पृ. 737] आचारांग 12/6/99
मुनि मौन ( संयम अथवा ज्ञान ) को ग्रहण कर कर्मरूप शरीर को
‘धुन डालता है अर्थात् आत्मा से दूर कर देता है ।
198. मुनि कौन ?
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मन्यते यो जगत्तत्त्वं स मुनिः परिकीर्तितः । सम्यक्त्वमेव मौनं, मौनं सम्यक्त्वमेव च ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 309]
ज्ञानसार 13/1
जो जगत् के स्वरूप का ज्ञाता है, उसे मुनि कहा गया है । अत: सम्यक्त्व ही श्रमणत्व है और श्रमणत्व ही सम्यक्त्व है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 105