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190. अनास्त्रवी श्रमण अप्पसत्थेहिं दारेहिं, सव्वओ पिहियासवो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 300]
- उत्तराध्ययन 1993 मुनि कर्म-आगमन के सभी अप्रशस्त द्वारों को सब ओर से बन्द कर अनास्रवी बन जाता है। 191. दुःखवर्धक क्या ?
वियाणिया दुक्खविवद्धणं धणं । - - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 301]
- उत्तराध्ययन 1989 धन दु:खवर्धक है। 192. भयावह क्या ? ममत्तबंधं च महब्भयावहं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 301]
- उत्तराध्ययन - 1989 ममत्त्व का बन्धन अत्यन्त भयावह है । 193. धर्म-धुरा सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेह निव्वाण गुणावहं महं।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 301]
- उत्तराध्ययन 19/09 जो सुखावह और निर्वाण के गुणों को देनेवाली है, ऐसी अनुत्तर महान् धर्म-धुरा को धारण करो । 194. उत्तम चरित्र तवप्पहाणं चरियं च उत्तमं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 301]
- उत्तराध्ययन 1998 तपोमूलक चारित्र ही श्रेष्ठ चारित्र है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 104
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