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________________ 199. सर्वश्रेष्ठ मौन सुलभं वागनुच्चारं मौनमेकेन्द्रियेष्वपि । पुद्गलेषु अप्रवृत्तिस्तु योगिनां मौनमुत्तमम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 310] - ज्ञानसार 13/1 वाणी का अनुच्चार रूप मौन एकेन्द्रिय जीवों में भी आसानी से प्राप्त हो सकता है, लेकिन पुद्गलों में मन-वचन, और कावा की कोई प्रवृत्ति न हो; यही योगी पुरुषों का सर्वश्रेष्ठ मौन है । 200. क्रिया, ज्ञानमयी ज्योतिर्मयी व दीपस्य क्रिया सर्वाऽपि चिन्मयी। यस्यानन्यस्वभावस्य तस्य मौनमनुत्तरम् ॥ __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 311] - ज्ञानसार 1318 जैसे दीपक की समस्त क्रियाएँ (ज्योति का ऊँचा-नीचा होना, वक्र होना और कम ज्यादा होना) प्रकाशमय होती हैं, वैसे ही आत्मा की सभी क्रियाएँ ज्ञानमयी होती हैं । उस अनन्य स्वभाववाले मुनि का मौन अनुत्तर होता है। 201. कर्मक्षय से मोक्ष कृत्स्नकर्मक्षयो मुक्तिः । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 316] - द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका 3118 समग्र कर्मों का क्षय हो जाने से मोक्ष प्राप्त होता है । 202. निर्लोभता-फल मुत्तीएणं अकिंचणत्तं जणयइ । __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 318] - उत्तराध्ययन 29/47 निर्लोभता से अकिंचनभाव (परिग्रह रहित) की प्राप्ति होती है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 106
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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