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182. पक्षी-परिचर्या परिकम्मं को कुणइ, अरण्णे मीगपक्खिणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 299]
- उत्तराध्ययन - 1907 जंगलों में रहनेवाले पशु व पक्षियों की परिचर्या-चिकित्सा कौन करता है ? 183. निन्दा-अवज्ञा-वर्जन नो हीलए नो विय खिसइज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 299-1174] - उत्तराध्ययन - 19/84
एवं दशवैकालिक - 9302 न तो किसी की निंदा करो और न अवज्ञा । 184. मुनि का वास्तविक स्वरूप
निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो। समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 300]
- उत्तराध्ययन - 1990 मुनि वही है, जिसने ममता को मार डाला है, अहंकार को चकनाचूर कर दिया है, सब प्रकार के परिग्रह का त्याग कर दिया है; बड़प्पन को छोड़ दिया है और जो जंगम तथा स्थावर प्राणी के प्रति समान भाव रखता है। 185. मुनि सबसे मुक्त
गारवेसु कसायसुदंड-सल्ल भएसु य । णियतो हास-सोगाओ, अणियाओ अबंधणो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 300]
- उत्तराध्ययन 19192 मुनि गर्व, कषाय, दण्ड, शल्य, भय, हास्य और शोक से निवृत्त तथा निदान और बंधन से मुक्त होता है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 102