________________
इस संसार में जिसकी तृष्णा बुझ्न चुकी है, अभिलाषा-इच्छा शान्त हो गई है, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है । 178. पापात्मा की दुर्दशा दद्धो-पक्को अ अवसो, पावकम्मेहिं पाविओ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 297]
- उत्तराध्ययन 19/58 यह पापात्मा पाप-कर्मों द्वारा आग से जलायी गयी, पकायी गयी और दु:ख झोलने के लिए विवश की गयी । 179. जीव-दुर्दशा कप्पिओ फालिओ छिन्नो, उक्कित्तो अ अणेगसो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 297]
- उत्तराध्ययन - 19/63 यह आत्मा अनेकबार कैंचियों से काटी गयी है, फाड़ी गयी व छेदी गयी है और इसकी चमड़ी भी उधेड़ी गई है। 180. नर्क वेदना-विभीषिका महब्भयाओ भीमाओ, नरएसु दुहवेयणा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 297]
- उत्तराध्ययन 19/03 नरकों में दुःख-वेदनाएँ महान् भयंकर और भीषण होती हैं । 181. नारकीय वेदना अनंत
जारिसा माणुसे लोए तथा दीसंति वेयणा । . एतो अणंतगुणिया, नरएसु दुक्खवेयणा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 297]
- उत्तराध्ययन - 1974 मनुष्यलोक में जो वेदनाएँ नजर आ रही हैं; नरकों में उनसे अनन्तगुणी अधिक दु:ख-वेदनाएँ हैं ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 101