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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 25]
- उत्तराध्ययन 19/29 उग्र ब्रह्मचर्य महाव्रत को धारण करना अतिकठिन कार्य है । 174. धर्मी, सुखी
एवं धम्मपि काउणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो से सुही होइ, अप्पकम्मे अवेयणे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन - 19/22 जो मनुष्य यहाँ भली भाँति धर्म की आराधना करके परलोक जाता है; वह वहाँ अल्पकर्मी तथा पीडारहित होकर अत्यन्त सुखी होता है। . 175. अधर्मी, दुःखी
एवं धम्मं अकाऊण, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो से दुही होइ, वाहीरोगेहिं पीडिओ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 2951
- उत्तराध्ययन - 19/20 जो मनुष्य बिना धर्माचरण किए परलोक में जाता है, वह वहाँ अनेकानेक रोग और व्याधियों (कष्टों) से पीड़ित होकर अत्यन्त दु:खी होता
है।
176. अनन्त वेदनामय संसार सरीरामाणसा चेव वेयणाओ अणंतसो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 296]
- उत्तराध्ययन 19/46 इस संसार में शारीरिक और मानसिक अनन्त वेदनाएँ हैं । 177. तृष्णा इहलोगे निप्पिवासस्स, नऽत्थि किंचिवि दुक्करं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 296] - उत्तराध्ययन 19/44
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 100
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