________________
164. संयम, बालूमोदक बालुयाकवले चेव, निरस्साए उ संजमे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन 19/38 . संयम, बालू-रेती के कौर की तरह नीरस है, स्वाद रहित है। 165. शत्रु-मित्र में समता समया सव्वभूएसु सत्तुमित्तसु वा जगे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन - 19/26 साधु, जगत् के शत्रु अथवा मित्र सभी जीवों के प्रति समभाव रखते हैं। 166. हितकारी सत्य भासियव्वं हियं सच्चं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन 19/27 सदा हितकारी सत्य बोले । 167. अदत्त-त्याग दंतसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन 19/27 और तो क्या ? साधक बिना किसी की अनुमति के दाँत साफ करने के लिए एक तिनका भी नहीं लेता । 168. ब्रह्मचर्य अतिकठिन दुक्खं बंभव्वयं घोरं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन - 19/33 घोर ब्रह्मचर्य को धारण करना अतिकठिन है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 98