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________________ एवं लोए पलित्तंमि, जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि, तुब्भेहिं अणुमन्निओ ॥ - उत्तराध्ययन 19/23-24 जैसे घरमें आग लग जाने पर गृहपति मूल्यवान् - सारभूत वस्तुओं को बाहर निकाल लाता है और मूल्यहीन वस्तुओं को वहीं छोड़ देता है, वैसे ही जरा और मृत्यु की अग्नि से प्रज्ज्वलित इस संसार में से मैं भी सारभूत अपनी आत्मा को बाहर निकाल लूँगा अर्थात् उद्धार करूँगा । 161. संयम दुष्कर जहा दुक्ख भारे जे, होइ वायस्स कुत्थलो । तहा दुक्खं करेडं जे, कीवेण समणत्तणं ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 295] उत्तराध्ययन 1941 जैसे - कपड़े के थैले को हवा से भरना कठिन है, वैसे ही कायर व्यक्ति के लिए श्रमण-धर्म का पालन करना भी कठिन कार्य है । 162. सहस्त्र गुणधारक भिक्षु श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 295] गुणाणं तु सहस्साइं धारेयव्वाइं भिक्खुणा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 295] - उत्तराध्ययन 19/25 भिक्षु को हजारों गुण धारण करने होते हैं । कठिन है । 163. अतिकठिन क्या ? - सव्वारंभ परिच्चाओ, निम्ममत्तं सुदुक्करं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295] उत्तराध्ययन 1930 सभी हिंसात्मक प्रवृत्तियों और ममत्त्व का त्याग करना अत्यन्त अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 97
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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