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इस श्रमण-चर्या में जीवनभर कहीं विश्राम नहीं है । भारी लोहमार की तरह सदा गुणों का महान् गुरुतर भार उठाना बहुत ही मुश्किल है । 156. निर्दोष वस्तु अतिदुष्कर
अणवज्जेसणिज्जस्स गिण्हणा अविदुक्करं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
उत्तराध्ययन 1928
प्रदत्त वस्तु को भी गवेषणापूर्वक और निर्दोष ही ग्रहण करना अति
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दुर्लभ है ।
157. अहिंसा दुष्कर
पाणाइवायविरइ, जावज्जीवाय दुक्करं ।
उत्तराध्ययन 19 /26
जीवनभर प्राणियों की हिंसा नहीं करना, बहुत ही कठिन कार्य है ।
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158. श्रमणत्व दुष्कर
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 295]
सामण्णं पुत्त दुच्चरं ।
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चबाना है ।
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उत्तराध्ययन
श्रमणधर्म का आचरण अत्यन्त दुष्कर है ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 295 ]
19/25
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159. लोहे के चने चबाना
जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्करं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 295]
उत्तराध्ययन 19/39
श्रमण जीवन का पालन करना मोम के दाँतों से लोहे के चने
160. आत्मोद्धार हेतु उद्गार
जहा गेहे पलितम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू । सारभंडाणि नीणेइ, असारं अवउज्झइ ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 96