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152. श्रमणत्व दुष्कर
जहा तुलाए तोलेउं, दुक्करं मंदरोगिरि । तहा निहुअ नीसंकं, दुक्करं समणत्तणं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन 19/42 जैसे-मेरु-पर्वत को तराजू से तोलना बहुत कठिन कार्य है, वैसे ही निश्चल और नि:शंक होकर श्रमणत्व का पालन करना कठिन है । 153. दमन दुस्तर
जहा भुयाहि तरिउं, दुक्करं रयणायरो । तहा अणुवसन्नेणं, दुक्करं दमसायरो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन 19/43 ... जैसे-भुजाओं से समुद्र को तैरना अतिकठिन है, वैसे ही अनुपशान्त व्यक्ति के लिए इन्द्रिय-दमन रूपी समुद्र को पार करना अतिकठिन है। 154. श्रमणत्व, अग्निपानवत्
जहा अग्गिसिहादित्ता, पाउं होइ सुदुक्करं । तहा दुक्करं करेउं जे, तारुण समणंत्तणं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन 19/40 जैसे-प्रज्ज्वलित अग्नि-शिखा का पान करना अति दुष्कर है, वैसे ही युवावस्था में श्रमण-धर्म का पालन करना अतिकठिन है । 155. श्रमणत्व, महान् गुरुतरभार
जावज्जीवमविस्सामो, गुणाणं तु महब्भरो । गुरुओ लोहभाव, जो पुत्ता होइ दुव्वहो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 295]
- उत्तराध्ययन 19/37 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 95