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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 294]
उत्तराध्ययन 19/15
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जन्म दु:ख रूप है, बुढ़ापा, रोग और मृत्यु भी दुःख रूप है । अरे ! इस संसार में चारों ओर दुःख ही दुःख है । जहाँ प्राणी निरन्तर क्लेश पाते रहते हैं ।
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149. शरीर कैसा ?
इमं सरीरं अणिच्चं, असुइं असुइसंभवं ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 294]
उत्तराध्ययन 19/12
यह शरीर अनित्य है, अपवित्र है, और अपवित्र वस्तुओं से ही यह उत्पन्न हुआ है ।
150. पानी केरा बुलबुला
असासए सरीरम्मि, रखं नोवलभामहं ।
पच्छा पुरा व चइयव्वे, फेण बुब्बुय-सन्निभे ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 294]
उत्तराध्ययन 1913
यह शरीर पानी के बुलबुले के समान क्षणभंगुर है और पहले या पीछे कभी भी इसे छोड़ना ही होगा । मेरी इस अशाश्वत शरीर के प्रति तनिक भी आसक्ति नहीं है ।
151. निशिभोजन - त्याग दुष्कर
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चउवि वि आहारे, राईभोयणं वज्जणा । सन्निही संचओ, चेव वज्जेयव्वो सुदुक्करं ||
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 295] उत्तराध्ययन 19 /31
अन्न आदि चतुर्विध आहार का रात्रि में सेवन नहीं करना चाहिए तथा दूसरे दिन के लिए भी रात्रि में खाद्य पदार्थों का संग्रह करना निषिद्ध हैं । अतः रात्रिभोजन का त्याग वास्तव में बड़ा दुष्कर है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 94