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126. मौन - उपासना
एतं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि ।
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मुनि मौन की सदैव सम्यक् प्रकार से उपासना करें ।
127. बंध - मोक्षः स्वयं के भीतर
बंधपमोक्खो तुज्झऽज्झत्थेव ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 568]
आचारांग 152/155
बंध और मोक्ष हमारी आत्मा में ही है अर्थात् बंध - मोक्ष
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 568] आचारांग 1/5/2/57
वस्तुतः
स्वयं के भीतर ही है 1
128. परम चक्षुष्मान् !
पुरिसा परमचक्खु ! विपरिक्कम ।
हे परम चक्षुष्मान् पुरुष ! तू पुरुषार्थ कर !
129. आत्मा ही अहिंसा
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 568] आचारांग 1/52/155
आया चेव अहिंसा |
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 2] ओघनियुक्ति 754
निश्चय दृष्टि से आत्मा ही अहिंसा है।
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130. अहिंसकत्व
अज्झप्प विसोहीए, जीवनिकाएहिं संथडे लोए । देसियमहिंसगतं, जिणेहिं तेलोक्कसीहिं ||
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 612 ] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 89