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________________ 122. रसना - दमन ण सक्का रसमणासातुं, जीहा विसयमागतं । राग दोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 566] आचारांग 2/3/15/133 - यह शक्य नहीं है कि जीभ पर आया हुआ अच्छा या बुरा रस चखने में न आये; अत: रस का नहीं; किंतु रस के प्रति जगनेवाले राग-द्वेष का त्याग करना चाहिए । 123. स्पर्श - दमन णो सक्का ण फासं संवेदेतुं, विसयमागतं । राग दोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 567] आचारांग 2/3/15/134 यह शक्य नहीं है कि शरीर से स्पर्श होनेवाले अच्छे या बुरे स्पर्श की अनुभूति न हो, अतः स्पर्श का नहीं; किंतु स्पर्श के प्रति जगनेवाले रागद्वेष का त्याग करना चाहिए । - 124. परिग्रहः महाभय एतदेवेगेसिं महब्भयं भवति । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 567] आचारांग 152/154 यह परिग्रह ही परिग्रहियों के लिए महाभय का कारण होता है । 125. विरत अणगार एत्थ विरते अणगारे दोहरायं तितिक्खते । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 568] आचारांग 1/5/2/156 परिग्रह से विरत अणगार क्षुधा - पिपासादि परिषहों को जीवनभर सहन करे । - - अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 88
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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