SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - प्रश्नव्याकरण 1/520 परिग्रहासक्त प्राणी परलोक में नष्ट-भ्रष्ट होते हैं और अज्ञानान्धकार में प्रविष्ट होते हैं। 102. परिग्रह-पाप का कटु फल एसो सो परिग्गहस्स फलविवागो इहलोईओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 555] - प्रश्नव्याकरण 1/5/28 परिग्रह का उभयलोक सम्बन्धी यह फल विपाक अल्प-सुख और अधिक दु:ख देनेवाला है और अत्यन्त भयानक है । 103. बाह्य निर्ग्रन्थता वृथा चित्तेऽन्तर्ग्रन्थगहने बहिनिपॅथता वृथा । त्यागात्कंचुकमात्रस्य, भुजगो न हि निर्विषः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 556] - ज्ञानसार 254 यदि चित्त अंतरंग परिग्रह से व्याकुल हो तो बाह्य निर्ग्रन्थता निरर्थक है। केंचुली छोड़ने मात्र से सर्प विषरहित नहीं हो जाता। 104. परिग्रहः ग्रह परिग्रहग्रहः कोऽयं विडम्बितजगत्त्रयः । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 556] - ज्ञानसार 254 . न जाने परिग्रह रूपी यह ग्रह कैसा है ? जिसने त्रिलोक को विडम्बित (पीड़ित) किया है। 105. त्रिलोकपूजित कौन ? यस्त्यक्त्वा तृणवद् बाह्यमान्तरं च परिग्रहम् । उदास्ते तत्पदाम्भोजं, पर्युपास्ते जगत्त्रयी ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 83
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy