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________________ अवकिरियव्वं विणासमूलं वहबंध परिकिलेस बहुलं अणंत संकिलेसं कारणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 555] - प्रश्नव्याकरण 1/509 यह परिग्रह अनंत है, यह किसी को शरण देनेवाला नहीं है । यह अस्थिर, अनित्य और अशाश्वत है, पाप-कर्मों की जड़ है, विनाश का मूल है, वध-बंधन और संक्लेश से व्याप्त है और अनन्त संक्लेश इसके साथ जुड़े हुए हैं। 98. दुःखों का घर सव्वदुक्ख संनिलयणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 555] - प्रश्नव्याकरण 1/509 यह परिग्रह समस्त दु:खों का घर है । 99. मन्दमति संचिणंति मंदबुद्धी । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 555] - प्रश्नव्याकरण 1/5/19 मंदबुद्धि मनुष्य परिग्रह का संचय करते हैं। 100. परिग्रहासक्त अत्ताणा अणिग्गहिया करेंति कोहमाणमायालोभे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 555] - प्रश्नव्याकरण 1/5/19 शरणरहित परिग्रहासक्त व्यक्ति मन और इन्द्रियनिग्रह से रहित होकर क्रोध, मान, माया और लोभ करते हैं। 101. परिग्रह-विपाक परलोगम्मि य णट्ठा तमं पविट्ठा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 555] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 82 - वी अभियान गोत्र कोष (या 2.
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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