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रस प्राय: मनुष्यों की धातुओं को उत्तेजित करते हैं अर्थात् उन्माद बढ़ानेवाले होते हैं। 45. कर्मबीज रागो य दोसो वि य कम्मबीयं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484]
- उत्तराध्ययन 32/M राग और द्वेष, ये दो ही कर्म के बीज हैं। 46. मोहक्षय, दुःखक्षय दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484]
- उत्तराध्ययन 32/8 ... जिसे मोह नहीं होता, उसका समग्र दु:ख नष्ट हो जाता है । 47. तृष्णा-त्याग मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484]
- उत्तराध्ययन 32/8 जिसके हृदय में तृष्णा नहीं है उसका समग्र मोह नष्ट हो जाता है। 48. निर्लोभ तण्हा हया जस्स न होइ लोहो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484]
- उत्तराध्ययन 32/8 जिसमें लोभ नहीं होता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है। 49. अपरिग्रह लोहो हओ जस्स न किंचणाई ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484]
- उत्तराध्ययन 3278 जिसके पास कुछ नहीं है, उसका लोभ नष्ट हो जाता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 68