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42.
उत्तराध्ययन 32/10
उद्दीप्त पुरुष के निकट कामभावनाएँ वैसे ही चली आती हैं। जैसेस्वादिष्ट फलवाले वृक्ष के पास पक्षी चले आते हैं । 41. वास्तविक दुःख
43.
काम-भावना
दित्तं च कामा समभिद्दवंति,
दुमं जहा सादुफलं व पक्खी ॥
44.
दुक्खं च जाई मरणं वयंति ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 484]
उत्तराध्ययन 32/7
बार-बार जन्म और बार-बार मरण, यही वस्तुतः दुःख हैं ।
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जन्म-मरण- मूल
कम्मं च जाई मरणस्स मूलं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484]
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उत्तराध्ययन 32/7
कर्म ही जन्म-मरण का मूल है ।
मोह से कर्म
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 484 ]
कम्मं च मोहप्पभवं वदंति ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484 ]
उत्तराध्ययन 32/7
कर्म, मोह से ही उत्पन्न होते हैं ।
रस, उद्दीपक
पायंरसा दित्तिकरा नराणां ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484 ]
उत्तराध्ययन 32/10
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-567