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________________ 36. शुद्ध मितभुक् आहारमिच्छे मितमेसणिज्जं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 483] - उत्तराध्ययन 3212 आत्मार्थी साधक परिमित और शुद्ध आहार की इच्छा करे । गुरु-वृद्ध-सेवा तस्सेस मग्गो गुरूविद्ध सेवा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 483] - उत्तराध्ययन 323 व्यवहार धर्म का यह मार्ग है कि गुरु और वृद्धों की सेवा करो। 38. मोक्ष-मार्ग तस्सेस मग्गो गुरूविद्ध सेवा, विवज्जणा बाल जणस्स दूरा । सज्झाय एगंत निसेवणा य, सुत्तत्थ संचिंतणया धिती य ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 483] - उत्तराध्ययन 328 गुरु और वृद्धजनों (स्थविर मुनियों) की सेवा करना, अज्ञानी जनों के संपर्क से दूर रहना, स्वाध्याय करना, एकान्तवास करना, सूत्र और अर्थ का सम्यक् चिंतन करना तथा धैर्य रखना-ये मोक्ष प्राप्ति के मार्ग हैं। 39. अतिमात्रा में रस-वर्जन रसापगामं न निसेवियव्वा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 484] - उत्तराध्ययन 3200 ब्रह्मचारी को अधिक मात्रा में रसों का सेवन नहीं करना चाहिए। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 66
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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