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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 479] - उत्तराध्ययन नियुक्ति 180 मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा-यह पाँच प्रकार का प्रमाद है जो जीव को संसार में गिराता है। 33. एकान्त सुख, मोक्ष णाणस्स सव्वस्स पगासणाए, .. अन्नाण मोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगंत सोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 482] - उत्तराध्ययन 3212 ज्ञान के समग्र प्रकाश से, अज्ञान और मोह के विसर्जन से तथा राग-द्वेष के क्षय से आत्मा एकान्त सुख रूप मोक्ष को प्राप्त करती है। 34. समाधिकामी तपस्वी .समाहि कामे समणे तवस्सी । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 483] - उत्तराध्ययन 32/4 जो श्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी है। 35. मोह-तृष्णा जहा य अंडप्पभवा बलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहायतणं खु तण्हा, मोहं च तण्हायतणं वयंति ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 483] - उत्तराध्ययन 32/6 जिसप्रकार बलाका (बगुली) अंडे से उत्पन्न होती है और अंडा बलाका से; इसीप्रकार मोह तृष्णा से उत्पन्न होता है और तृष्णा मोह से। व तण्हा , अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5.65
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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