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जिस तपस्वी ने कषायों को निगृहीत नहीं किया, वह बाल तपस्वी है। उसके तप रूपमें किए गए सब कायकष्ट गजस्नान की तरह व्यर्थ है। 29. ज्ञानावरणीय बंध
ज्ञानस्य ज्ञानिनां चैव, निंदा-प्रद्वेष-मत्सरैः । उपघातैश्च विघ्नेश्च, ज्ञानजं कर्मबध्यते ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 389]
- उत्तराध्ययन पाइ टीका 2 अ. ज्ञान व ज्ञानियों की निंदा, द्वेष, ईर्ष्या एवं उनका नाश करने से और उनमें विघ्न डालने से ज्ञानावरणीय कर्म बंधता है । 30. गुण-दोष
जो उ गुणो दोसकरो, ण सो गुणो दोसमेव तं जाणे। अगुणो वि होति उ गुणो, विणिच्छओ सुंदरो जस्स ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 398] - निशीथ भाष्य 5877
- बृहदावश्यक भाष्य 4052 जो गुण, दोष का कारण है, वह वस्तुत: गुण होते हुए भी दोष ही है और वह दोष भी गुण है; जिसका परिणाम सुन्दर है अर्थात् जो गुण का कारण है। 31. पञ्च पवित्र सिद्धान्त
पंचैतानि पवित्राणि, सर्वेषां धर्मचारिणाम् । अहिंसासत्यमस्तेयं, त्यागो मैथुनवर्जनम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 473]
- हारिभद्रीय अष्टक 132 अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और मैथुनत्याग-ये पाँच सभी धर्मचारियों के लिए पवित्र हैं । अत: इनका पूर्ण आचरण करना चाहिए। 32. पञ्च प्रमाद मज्जं विसय कसाया निद्दा विगहा य पंचमी भणिया।
या नावही यापनमा भाणय इअ पंच पमाया, जीवं पाडेंति संसारे ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 64