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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 9]
उत्तराध्ययन 26/32
छः कारणों से आहार करता हुआ साधु प्रभु आज्ञा का उल्लंघन
नहीं करता । वे कारण ये हैं
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(१) क्षुधावेदनीय को शान्त करने के लिए (२) वैयावृत्य – सेवा करने के लिए (३) ईर्यासमिति का पालन करने के लिए (४) संयम पालन करने के लिए (५) प्राण-रक्षा के लिए और (६) धर्म - चिन्तन करने के लिए ।
करे ।
7.
6. स्वाध्याय तप
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सज्झायं तु तओ कुज्जा सव्वभावविभावणं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 10]
उत्तराध्ययन 26/36
समस्त भावों का प्रकाशक (अभिव्यक्त करनेवाला) स्वाध्याय तप
श्रमण-रात्रिचर्या
पढमं पोरिसि सज्झायं, बिइए झाणं झियायई । तइयाए निमोक्खं तु, सज्झायं तु चउथिए || श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 10]
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उत्तराध्ययन 26/43
संयमी साधक प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान, तीसरे प्रहर में निद्रा-त्याग और चौथे प्रहरमें पुनः स्वाध्याय करें ।
8.
सबमें एक
हथिस्स य कुंथुस्स समे चेव जीवे ?
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 38] भगवतीसूत्र 1/8/2
आत्मा की दृष्टि से हाथी और कुंथुआ - दोनों में आत्मा एक समान
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 58