SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1607] आचारांग 1/2/4/85 शांति (मोक्ष) और मरण (संसार) को देखनेवाला साधक प्रमाद - न करे । 459. विषय - अनासक्ति अप्पमादो महामोहे | विषयों के प्रति अनासक्त रहें । 460. मोहावृत्त पुरुष श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1607] आचारांग 1/2/4/85 इणमेव णावबुज्झंति जे जणा मोह पाउडा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1607] आचारांग 1/2/4/83 जो मनुष्य मोह की सघनता से घिरे हुए हैं, वे इस तथ्य को नहीं समझ पाते कि पौद्गलिक भोगसुख क्षणभंगुर हैं और वे ही शल्य रूप हैं । 461. भोगासक्ति, शल्य FRE - तुमं चेव तं सल्लाहट्टु | - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1607] आचारांग 1/2/4/83 तूने ही उस भोगासक्ति रूप शल्य अर्थात् काँटे का सृजन किया है। 462. पंडितजन - धारणा नरगतिरिक्खाए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1607] ते भो ! वदंति एयाई ******** आचारांग 1/2/4/84 पंडितजन कहते हैं हे पुरुष ! ये स्त्रियाँ आयतन अर्थात् भोगसामग्री हैं। उनकी यह धारणा है कि उनके दुःख मोह, मृत्यु और नरक तथा नरक के बाद तिर्यंच गति के लिए हैं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 176
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy