SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1590] - प्रश्नव्याकरण 20/25 भयाकुल व्यक्ति भूत-प्रेतों द्वारा आक्रान्त कर लिया जाता है। 451. भीरु की दशा भीतो अण्णं पि हु भेसेज्जा। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1590] - प्रश्नव्याकरण 20.25 भयभीत मनुष्य स्वयं तो डरता ही है, साथ ही दूसरों को भी भयभीत बना देता है। 452. धर्मतरुमूल, विनय मूलाउखंधप्पभओदुमस्स,खंधाउपच्छासमुवेंति साहा। साहप्पसाहाविरुहंतिपत्ता,तओसिपुफ्फंचफलंस्सोय ॥ एवं धम्मस्स विणओ, मूलं से परमं मुक्खं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1593] एवं [भाग 6 पृ. 1170] - दशवैकालिक 920 वृक्ष के मूल से स्कन्ध उत्पन्न होता है। स्कन्ध के पश्चात् शाखाएँ निकलती हैं । शाखाओं में से प्रशाखाएँ फूटती हैं और इसके बाद पत्र-पुष्प और रस उत्पन्न होता है । इसीतरह विनय धर्मरूपी वृक्ष का मूल है और उसका सर्वोत्तम रस है-मोक्ष। 453. भोग से निरपेक्ष... भोगेहिं निरवयक्खा , तरंति संसार कंतारं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1604] - ज्ञाताधर्मकथा 1/31 ___ जो विषयो भोगों से निरपेक्ष रहते हैं, वे संसार वन को पार कर जाते हैं। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 174
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy