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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1590]
- प्रश्नव्याकरण 2125 भयभीत नहीं होना चाहिए। 446. भीरु, भयग्रस्त भीतं खु भया अइति लहुयं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1590]
- प्रश्नव्याकरण 2125 भीरु मनुष्य को अनेक भय शीघ्र ही जकड़ लेते हैं। 447. भीरु साधक भीती य भरं ण नित्थरेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1590]
- प्रश्नव्याकरण 2025 भयभीत साधक स्वीकृत कार्यभार का भलीभाँति निर्वाह नहीं कर
'सकता।
448. भयभीत मानव भीतो तपसंजमं पि हु मुएज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1590]
- प्रश्नव्याकरण ?M/25 भयभीत बना हुआ पुरुष निश्चत ही तप और संयम की साधना • भी छोड़ बैठता है। 449. असहाय भीतो अबितिज्जओ मणूसो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1590]
- प्रश्नव्याकरण 2425 भयभीत मनुष्य असहाय रहता है। 450. भूताक्रान्त
भीतो भूतेहिं घिप्पइ । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 173