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432. वही भिक्षु सव्व संगावगाए अ जे, स भिक्खू ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1567]
- दशवकालिक 1016 जो सभी द्रव्य और भावासक्ति से दूर है, वही सच्चा भिक्षु है । 433. कुपितकारी भाषा-त्याग जेणऽन्नो कुप्पेज्ज न तं वएज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1567]
- दशवैकालिक 1018 जिससे दूसरा कुपित हो, ऐसी बात भी मत कहो । 434. रस-अनासक्ति अलोलो भिक्खू न रसेसु गिद्धे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1567]
- दशवकालिक 1017 अलोलुप होता हुआ भिक्षु रसों में आसक्त न हो । 435. निःस्पृही भिक्षु
इड्डिं च सक्कार ण पूयणं च, चए ठियप्पा अणिहे जे, स भिक्खू ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1567]
- दशवकालिक 1047 जो ऋद्धि, सत्कार और पूजा की स्पृहा का त्याग कर देता है, ज्ञानादि में स्थितात्मा है और आसक्ति रहित है, वही भिक्षु है । 436. अनुच्छंखल भिक्षु उंछं चरे जीविय नाभिकंखे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1567] - दशवकालिक 1017
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 170