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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1566]
- दशवकालिक 100 मन-वचन-काया से जो संवृत्त है, वह भिक्षु है । 423. स्वाध्यायरत सज्झायरए य जे, स भिक्खू ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1566]
- दशवैकालिक 10 जो स्वाध्याय में रत है, वह साधु है । 424. कषाय त्याज्य चत्तारि वमे सया कसाए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 . 1566)
- दशवकालिक 10/6 चारों कषाय सदा त्याज्य हैं। 425. सम्यक्दृष्टि सम्मदिट्ठी सया अमूढे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1566]
- दशवकालिक 100 जिसकी दृष्टि सम्यक है, वह कभी कर्तव्य-विमूढ़ नहीं होता। 426. कैसा मत बोलो ? न य वुग्गहिअं कहं कहेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1566]
- दशवकालिक 1000 कलहवर्धक बात मत कहो। 427. वही भिक्षु उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1566-1571]
- दशवैकालिक 1010 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 168
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