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________________ 418. सच्चा भिक्षु वंतं नो पडिया वियति जे, स भिक्खू । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1565] दशवैकालिक 101 त्याग किए हुए पदार्थों का जो फिर सेवन नहीं करता है, वही भिक्षु है । 419. भिक्षु कौन ? पंच य फासे महव्वयाई, पंचासव संवरए जे स भिक्खू । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1565] दशवैकालिक 10/5 जो पाँच महाव्रतों का पालन करता है एवं मिथ्यात्व आदि पाँच - आस्रवों को रोकता है, वह 'भिक्षु' है । 420 आत्मवत् सर्वजीव अत्तसमे मन्नेज्ज छप्पिकाए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1565] दशवैकालिक 10/5 षट्काय अर्थात् पृथ्वी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस जीवों को अपनी आत्मा के समान समझो । - - 421. गुणहीन भिक्षु भिक्खू गुणरहिओ, भिक्खंगिण्हइन होइ सो भिक्खू । वणेण जुत्ति सुवण - गंव असई गुणनिहिम्मि ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1565] दशवैकालिक नियुक्ति 356 जो भिक्षु गुणहीन है, वह भिक्षावृत्ति करने पर भी भिक्षु नहीं कहला सकता । सोने का झोल चढ़ा देने भर से पीतल आदि सोना नहीं हो सकता । 422. भिक्षु कौन ? - मणवयकाय सुसंवुडे जे, स भिक्खू । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 167
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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