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409. कौन प्रशंसनीय ?
मिअं अदुटुं अणुवीई भासए, सयाण मज्झे लहई पसंसणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1549]
- दशवैकालिक 7/55 जो सोच समझकर सुन्दर और परिमित शब्द बोलता है, वह नजनों के बीच प्रशंसा पाता है। 410. बोले, बीच में नहीं अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अंतरा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1549]
- दशवैकालिक 8/46 बिना पूछे व्यर्थ ही किसी के बीच में नहीं बोलना चाहिए। 411. पैशुन्य, पीठमांस-भक्षण
पिट्ठिमंसं न खाएज्जा। . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1549]
- - दशवकालिक 8/46
पीठ पीछे किसी की चुगली नहीं खाना चाहिए, क्योंकि किसी की चुगली खाना, पीठ का माँस नोचने के समान है। 412. परिहास-वर्जन
आयारपण्णत्तिधरं, दिट्ठिवायमहिज्जगं । वइविक्खलियं णच्चा, न तं उवहसे मुणी ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1549] • - दशवकालिक 8/49
आचारप्रज्ञप्ति के ज्ञाता, दृष्टिवाद के अध्येता साधु भी कदाचित बोलते समय वचन से स्खलित हो जाय, तो मुनि उनकी हंसी न करे । 413. मनीषी-अभिव्यक्ति
वएज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 165