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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1548]
- दशवकालिक 7/46 निरवद्य-पापरहित बोलो। · 397. अप्रिय वचन-निषेध
अचियत्तं चेव णो वए।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1548]
- दशवैकालिक 7/43 अप्रीतिकर वचन मत बोलो। 398. संयत साधु कौन ?
नाणदंसण सम्पन्नं, संजमे य तवे रयं । एवं गुण-समाउत्तं, संजय साहुमालवे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1548]
- दशवकालिक 7/49 जो ज्ञान-दर्शन से सम्पन्न हो, संयम और तपश्चरण में लीन हो और सदा सद्गुणों को धारण करनेवाला हो, उसे सच्चा संयत साधु कहना चाहिए। 399. बोल, तराजू तोल अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ एवं भासेज्ज पण्णवं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1548] .. - दशवैकालिक 7/44
प्रज्ञावान् सबप्रकार के वचन सम्बन्धी विधि-निषेधों का पूर्वापर विचार करके बोले ! 400. वाणी-विवेक न लवे असाहुं साहुं त्ति, साई साहुति आलवे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1548] - दशवकालिक 7/48
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 162