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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1544]
- दशवैकालिक 70 जिस सम्बन्ध में कुछ भी शंका जैसा लगता हो, उस संबंध में 'यह ऐसा ही है', ऐसी निश्चयात्मक भाषा का प्रयोग न करें। . 392. निश्चयात्मक भाषा-वर्जन
जमटुं तु न जाणेज्जा 'एवमेवं' ति ना वए । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1544]
- दशवकालिक 718 जिस बात का स्वयं को पता न हो, तो उस सम्बन्ध में 'यह ऐसा ही है' ऐसी निश्चयात्मक भाषा न बोलें। 393. विचारयुत वार्तालाप जहारिहमभिगिज्झ, आलवेज्ज लवेज्ज-वा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1545]
- दशवैकालिक 747-20 श्रमण यथायोग्य गुण-दोष आदि का विचार कर बातचीत करे । 394. भाषा-विवेक भूओवघाइणि भासं, नेवं भासेज्ज पण्णवं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1546]
- दशवकालिक 7/29 प्राज्ञ पुरुष जीवोपघातिनी (मर्मभेदी) भाषा न बोले । 395. निष्पाप वाणी
सावज्जं नाऽऽलवे मुणी। - - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1547]
- दशवैकालिक 7/40 मुनि पापयुक्त (सावद्य) भाषा न बोलें । 396. निरवद्य भाषा
अणवज्जं वियागरे।
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 161..