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________________ 382. कर्म - मुक्ति तिउट्टंतिपावकम्माणि, नवं कम्ममकुव्वओ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1515] सूत्रकृतांग 1/15/6 जो नए कर्मों का बंधन नहीं करता है, उसके पूर्वबद्ध पापकर्म भी नष्ट हो जाते हैं । - 383. साधक, जलकमलवत् तिउट्टति तु उ मेधावी, जाणं लोगंसि पावगं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1515] सूत्रकृतांग 1/15/6 पापकर्म के स्वरूप को जाननेवाला मेधावी पुरुष संसार में रहता हुआ भी पाप से मुक्त हो जाता है । GIVE 384. भाव - विशुद्धि भावसच्चेणं भाव विसोहिं जणयइ । - - उत्तराध्ययन 29/52 भाव सत्य से आत्मा भाव विशुद्धि को प्राप्त करता है । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1517] 385. अर्हद् धर्माराधन भाव विसोही वट्टमाणे जीवे अरहंतपन्नस्स । धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्ठेइ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1517] COM उत्तराध्ययन 29/52 भाव - विशुद्धि में वर्तमान जीव अर्हत् धर्म की आराधना के लिए समुद्यत होता है । 386. दूषित भाषा त्याग भासा दोसं परिहरे । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1543 ] - अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 159
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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