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341. जिज्ञासु के अष्ठ गुण
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सुस्सूसइ' पडिपुच्छइ सुणेइ ३ गिण्हइ ४ य इहए ' यावि । तत्तो अपोहए वा, ६ धारेइ " करेइ वा सम्मं ' ॥
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1327] नंदीसूत्र 120/85
विद्याग्रहण करनेवाला व्यक्ति सर्वप्रथम १. सुनने की इच्छा करता है २. पूछता है ३. उत्तर को सुनता है ४. ग्रहण करता है ५. तर्क-वितर्क से ग्रहण किए हुए अर्थ को तोलता है ६ तोलकर निश्चय करता है ७. निश्चित अर्थ को धारण करता है ८. और फिर उसके अनुसार आचरण करता है।
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342. चतुर्धा - बुद्धि
चडव्विहा बुद्धी पन्नत्ता, तं जहा
उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामिया ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1328] स्थानांग 4/4/4/364
चार प्रकार की बुद्धि कही है - औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी |
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343. कथनी-करनी में एकरूपता
पाठकाः पठिताश्च ये चान्ये शास्त्रचिन्तकाः ।
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सर्वे व्यसनिनो मूर्खाः, यः क्रियावान् स पण्डितः ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1329]
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स्थानांगसूत्र सटीक 4/4
जो पढ़ने-पढ़ानेवाले हैं तथा जो शास्त्रों का केवल चिन्तन करनेवाले
हैं, वे सब पठनव्यसनी एवं मूर्ख हैं। वस्तुतः पण्डित तो वही है, जो पठनपाठनादि के अनुसार क्रिया (आचरण) करता है ।
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344. ज्ञानानुरूप आचरण
यः क्रियावान् स पण्डितः ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 148