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जिसप्रकार नीलवान् पर्वत से निकलकर सागर में मिलनेवाली सीता नदी सब नदियों में श्रेष्ठतम है । उसीप्रकार बहुश्रुत आत्मा सर्व साधुओं में श्रेष्ठ होता है ।
338. बहुश्रुत, रत्नाकर
जहा से सयंभुरमणे, उदही अक्खओदए । णाणारयण पडिपुणे, एवं भवइ बहुस्सु ॥
उत्तराध्ययन 11/30
जिसप्रकार अगाधजल से परिपूर्ण स्वयंभूरमण समुद्र अनेक प्रकार के रत्नों से भरा हुआ होता है । उसीप्रकार बहुश्रुत - आत्मा अक्षय ज्ञान गुण से परिपूर्ण होता है ।
339. बहुश्रुत, मन्दराचल
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1310]
जहा से नागाण पवरे, सुमहं मंदरे गिरी । नाणो सहिपज्जलिए, एवं भवइ बहुस्सुए ॥
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उत्तराध्ययन 11/29 A
जिसप्रकार अनेक औषधियों से प्रदीप्त अति महान् मन्दराचल पर्वत सभी पर्वतों में श्रेष्ठ है । उसीप्रकार बहुश्रुत आत्मा सर्व साधुओं में श्रेष्ठ होता है ।
340. बाल-संग
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1310]
अलं बालस्स संगेणं ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1316] [ भाग 6 पृ. 735]
आचारांग 1/2/5/94
अपरिपक्व बालजीव (अज्ञानी) की संगति से क्या प्रयोजन ?.
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5• 147