________________
334. बहुश्रुत, सुधाकर
जहा से उडुवई चंदे, नक्खत्त परिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं भवइ बहुस्सुए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1309]
- उत्तराध्ययन 11/25 जिसप्रकार नक्षत्र परिवार से परिवृत्त गृहपति चंद्रमा पूर्णिमा को परिपूर्ण होता है । उसीप्रकार संतवृन्द-परिवार से परिवृत्त बहुश्रुत ज्ञानी समस्त कलाओं से परिपूर्ण होता है । 335. बहुश्रुतता मुक्तिदायिनी
सुयस्स पुण्णा विपुलस्स ताइणो,' खवेत्तु कम्मं गइमुत्तमं गया ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1310]
- उत्तराध्ययन 11/31 विपुल श्रुतज्ञान से पूर्ण और षट्कार्यरक्षक महात्मा कर्मों को सर्वथा क्षय करके उत्तम गति में पहुंचे हैं। 336. मोक्षान्वेषक सुय महिद्विज्जा उत्तमट्ठ गवेसए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1310]
- उत्तराध्ययन 1132 श्रुत शास्त्र का अध्ययन करके और ज्ञान में सुस्थित होकर मोक्ष की गवेषणा करे एवं अनंतता की खोज करे । 337. बहुश्रुत, सर्वश्रेष्ठ
जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवंत पहवा, एवं भवइ बहुस्सुए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1310] - उत्तराध्ययन 11/28
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 146