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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1294] । प्रशमरति 168
'धर्म का मूल दया है' और क्षमारहित व्यक्ति दया को धारण नहीं कर सकता । अतः जो क्षमापरायण है, वही इस उत्तम धर्म को साधा है।
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324. अबहुश्रुत कौन ?
जे यावि होइ निव्विज्जे थद्धे लुद्धे अनिग्गहे । अभिक्खणं उल्लवई अविणीए अबहुस्सुए ॥
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उत्तराध्ययन 11 2
जो विद्याविहीन है और जो विद्यासम्पन्न होते भी अहंकारी है, जो रस-लोलुप है, जो अजितेन्द्रिय है, जो बार - बार असम्बद्ध बोलता है और जो अविनीत है, वह अबहुश्रुत है ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1306]
325. शिक्षा- शत्रु
अह पंचर्हि ठाणेहिं जेहिं सिक्खा न लब्भई । थंभा कोहा पमाएणं रोगेणाऽऽलस्सएण य ॥
उत्तराध्ययन 11 3
शिक्षा के लिए अयोग्य पात्र को 5 कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं होती । वे पाँच कारण हैं - अभिमान, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1306]
326. अष्ट शिक्षाङ्ग
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अह अट्ठहिं ठाणेहिं, सिक्खा सीलेत्ति वुच्चई । अहस्सिरे सयादंते, ण य मम्ममुयाहरे ॥ नासीले पण विसीले, ण सिया अइलोलुए । अकोहणे सच्चरए, सिक्खा सीति वुच्चई ॥
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1306]
उत्तराध्ययन 11 4-5
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 143