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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1279]
- उत्तराध्ययन 13/27 ये काम-भोग कर्मों का बंध करनेवाले होते हैं। 319. आर्य-कर्म अज्जाई कम्माइं करेहि।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1280]
- उत्तराध्ययन 13/32 आर्य-कर्मों को (श्रेष्ठ कामों को) करो । 320. दयापरायण धम्मे ठिओ सव्व पयाणुकम्पी ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1280]
- उत्तराध्ययन 13/32 धर्म में स्थर होकर सभी जीवोंपर दया परायण बनो। 321. अदूषित मन मणंपि न पओसए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1294)
- उत्तराध्ययन - 21 एवं 246 मन को दूषित मत करो। 322. आत्मा अमर नत्थि जीवस्स नासोत्ति ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1294]
- उत्तराध्ययन 2/29 आत्मा का कभी नाश नहीं होता। 323. क्षमापरायण
धर्मस्य दयामूलं न चाऽक्षमावान् दयां समाधत्ते । तस्माद्यः क्षान्ति परः, स साधयत्युत्तमं धर्मं ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 142