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313. घोरपाप-वर्जन माकासी कम्माणि महालयाणि ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1279]
- उत्तराध्ययन 13/26 महती दुर्गति देनेवाले घोरपाप कर्म मत करो। 314. जीवन मृत्यु की ओर उवणिज्जइ जीवियमप्पमायं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1279]
- उत्तराध्ययन 1326 यह जीवन शीघ्रातिशीघ्र मृत्यु की ओर चला जा रहा है । 315. समय अच्चेइ कालो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1279]
- उत्तराध्ययन 1331 समय बीता जा रहा है। 316. निशा तूरन्ति राइओ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1279]
- उत्तराध्ययन 1381 रात्रियाँ तेजी से दौड़ी जा रही हैं। 317. काम-भोग अनित्य
न या वि भोगा पुरिसाण निच्चा । - - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1279]
- उत्तराध्ययन 13/31 मनुष्यों के काम-भोग नित्य नहीं है । 318. काम, कर्मबन्धकारक
भोगा इमे संगकरा हवंति ।
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 141