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। आठ प्रकार से साधक को शिक्षाशील कहा जाता है । जो हास्य न करे, जो सदा इन्द्रिय और मन का दमन करे, जो मर्म प्रकाशित न करे, जो चरित्र से हीन न हो, जिसका चरित्र दोषों से कलुषित न हो, जो रसों में अतिलोलुप न हो, जो क्रोध न करें और जो सत्यरत हो । 327. सुविनीत कौन ? हिरिमं पडिसंलीणे सुविणीए त्ति वुच्चई ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1507]
- उत्तराध्ययन 11/13 जो शिष्य लज्जाशील और इन्द्रिय-विजेता होता है, वह सुविनीत बनता है। 328. गुरुकुलवास वसे गुरुकुले निच्चं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1307]
- उत्तराध्ययन 1104 साधक नित्य गुरुकुल में (ज्ञानियों की संगति में) रहें। 329. प्रियंकर-प्रियवादी पियंकरे पियंवाई, से सिक्खं लद्धमरिहई।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1307]
- उत्तराध्ययन 1104 प्रियकार्य करनेवाला और प्रियवचन बोलनेवाला अपनी अभीष्ट शिक्षा प्राप्त करने में सफल होता है। 330. सुशिक्षित
न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1307] - उत्तराध्ययन 1102.
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 144