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________________ अशाश्वत-भोगों का परित्याग करके मुक्ति के लिए अभिनिष्क्रमण करो। 305. अन्तसमय रक्षक नहीं ? न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मं सहरा भवन्ति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1278] - उत्तराध्ययन 13/22 मृत्यु के समय माता-पिता अथवा भ्राता उसके जीवन की रक्षा के लिए अपने जीवन का अंश देनेवाले नहीं होते । 306. कर्म-छाया कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1278] - उत्तराध्ययन 13/23 . कर्म सदा कर्ता के पीछे दौड़ता है। 307. यथा कर्म तथा गति सकम्मबिइओ अवसो पयाइ, परं भवं सुन्दर पावगं वा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1278) - उत्तराध्ययन 13/24 यह जीव अपने कृत कर्मों को साथ लेकर अच्छे या बुरे जन्म में 'चला जाता है। 308. क्यों पीछे पछताय ? से सोयई मच्चु मुहोवणीए, धम्म अकाऊण परंमि लोए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1278] - उत्तराध्ययन 1321 जो बिना धर्माचरण किए ही मृत्यु के मुख में चला गया है, वह परलोक में दु:खी होता है । पश्चात्ताप करता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 139
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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