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मानव के सभी सुचरित (सत्कर्म) सफल होते हैं । 300. दुःखद क्या ? सव्वे कामा दुहावहा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1277]
- उत्तराध्ययन 1346 सभी काम-भोग अन्तत: दु:खावह ही होते हैं । 301. नाचरंग-विडम्बना सव्वं नटं विडम्बियं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1277]
- उत्तराध्ययन 1306 सभी नाच रंग विडम्बना से भरे हैं। 302. आभूषण, भार
सव्वे आभरणा भारा । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1277]
- उत्तराध्ययन 1346 सभी आभूषण भार स्वरूप हैं । 303. शुभफल पूर्वकृत इहं तु कम्माइं पुरेकडाइं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1277]
- उत्तराध्ययन 13/09 यहाँ पर जो शुभ कर्म फल दे रहे हैं, वे पूर्वकृत हैं; पहले बाँधे हुए
304. अभिनिष्क्रमण आदाण हेउं अभिनिक्खमाहि ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1277] - उत्तराध्ययन 13/20.
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 138