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________________ उत्तराध्ययन 16/18 उस ब्रह्मचारी को देव, दानव, गंधर्व, यक्ष-राक्षस और किन्नर - ये सभी नमस्कार करते हैं जो दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है । 296. ब्रह्मचर्य से सिद्धि एस धम्मे धुवे नियमे सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिज्झति चाणेणं, सिज्झिस्संति तहाऽवरे ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1271] - उत्तराध्ययन 16/19 यह ब्रह्मचर्य धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है और जिनेश्वरों द्वारा उपदिष्ट है । इस धर्म के द्वारा अनेक साधक सिद्ध हुए हैं, हो रहे हैं और भविष्य में होंगे । 297. काम, दुस्त्याज्य दुज्जए काम भोगे य, निच्चसो परिवज्जए । उत्तराध्ययन 16/16 स्थिरचित्त साधक भिक्षु कठिनाई से छोड़ने योग्य काम - भोगों को - 299. सत्कर्म हमेशा के लिए छोड़ दे । 298. अवश्यमेव भोक्तव्य कडाण कम्माण न मोक्खो अस्थि । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1276] एवं [भाग 7 पृ. 57] उत्तराध्ययन 4/3 एवं 13/10 कृतकर्मों को भोगे बिना मोक्ष नहीं हो सकता है । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1271] - - सव्वं सुचिण्णं सफलं नराणं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1276] उत्तराध्ययन 13/10 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 137 -
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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