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________________ - उत्तराध्ययन 1600 ब्रह्मचर्यरत साधक मात्रा से अधिक भोजन नहीं करें। 291. काम-वर्जन पंचविहे कामगुणे, निच्चे सो परिवज्जए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1270 - उत्तराध्ययन 16/12 ब्रह्मचारी पाँच प्रकार के कामभोगों को सदा के लिए छोड़ दे । 292. काम, तालपुट विसं तालउडं जहा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1270] - उत्तराध्ययन 16/15 काम-भोग साक्षात् तालपुट जहा के समान है । 293. काम, दुर्जेय काम भोगा य दुज्जया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1270) - उत्तराध्ययन 16/15 काम-भोग दुर्जेय हैं। 294. धर्म-वाटिका धम्माराम चरे भिक्खू । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1271) - उत्तराध्ययन 1617 भिक्षु धर्मरूपी वाटिका में ही विचरण करे । 295. नमनीय कौन ? देवदाणवगंधव्वा, जक्खरक्खस्स किन्नरा । बभयारिं नमसंति, दुक्करं जे करंति तं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1271) .. अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 136
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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