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286. अति आहार-वर्जन .. णो निग्गंथे अइमायाए पाणभोयणं भुंजेज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1269]
- उत्तराध्ययन 1618 निर्ग्रन्थ मर्यादा से अधिक मात्रा में आहार-पानी नहीं करे । 287. श्रृंगार-वर्जन नो निग्गंथे विभूसाणुवाई सिया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1269]
- उत्तराध्ययन 169 निर्ग्रन्थ श्रृंगारवादी नहीं बने। 288. कामवर्धक आहार पणीयं भत्तपाणं तु खिप्पं मय विवड्ढणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1270]
- उत्तराध्ययन 16/1 साधक के लिए विषय-विकार को शीघ्र बढ़ानेवाला प्रणीत भक्तपान (सरस स्निग्ध) वर्जनीय है। 289. विभूषा-निषेध
विभूसं परिवज्जेज्जा, सरीर परिमंडणं ।। बंभचेररओ भिक्खू, सिंगारत्थ न धारए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1270]
- उत्तराध्ययन 1641 ब्रह्मचर्य-साधनारत भिक्षु श्रृंगार का त्याग करें और शरीर की शोभा बढ़ानेवाले केश, दाढ़ी आदि को श्रृंगार के लिए धारण न करें। 290. भोजन-मर्यादा नाइमत्तं तु भुंजेज्जा, बंभचेररओ सया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1270) अभिधान राजेन्द्र, कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 135
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