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- उत्तराध्ययन 164 जितेन्द्रिय और गुप्त ब्रह्मचारी सदा अप्रमादी होकर ही विचरण करें। 282. स्त्री-कथा-वर्जन नो निग्गंथे इत्थीणं कहं कहेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1268]
- उत्तराध्ययन 16/12 जो स्त्रियों की कथा नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है । 283. स्त्री-सौन्दर्य-विरक्ति
नो निग्गंथे इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई । मणोरमाई आलोइत्ता, निज्झाइत्ता ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1268]
- उत्तराध्ययन 16/4 निर्ग्रन्थ स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अंगोपांग रूप इन्द्रियों को न तो देखें और न ही उनका चिंतन करें। 284. पूर्वभुक्त भोग की विस्मृति
नो निग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1269]
- उत्तराध्ययन 16/6 निर्ग्रन्थ स्त्रियों के साथ पूर्वकाल में भोगे हुए भोगों को याद नहीं करें। 285. स्निग्धाहार वर्जित नो निग्गंथे पणीयं आहारं आहारेज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1269)
- उत्तराध्ययन 16/निर्ग्रन्थ सरस एवं पौष्टिक आहार नहीं करें । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 134