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278. भोजन ऐसा हो !
तहा भोत्तव्वं-जहा से जाया माता य भवति । न य भवति विब्भमो, न भंसणा य धम्मस्स ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1265]
- प्रश्नव्याकरण 2027 ऐसा हित-मित भोजन करना चाहिए जो जीवनयात्रा एवं संयमयात्रा के लिए उपयोगी हो सके और जिससे न किसी प्रकार का विभ्रम हो;
और न धर्म की भर्त्सना। 279. साधु ऐसा आहार न करें ! ण दप्पणं न बहुसोण णितिक न सायसूपाहिकंणखद्धं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1265]
- प्रश्नव्याकरण 2927 - संयमशील सुसाधु इन्द्रियोत्तेजक आहार न करें। दिनमें बहुत बार न खाए, प्रतिदिन लगातार नहीं खाए और न दाल-शाकादि अधिकतावाला प्रचुर भोजन करें। 280. ब्रह्मचर्य पालन दुष्करतम
शक्यं ब्रह्मव्रतं घोरं, शूरैश्च न तु कातरैः । करि पर्याणमुद्वाह्यं करिभि न तु रासभैः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1266
1282]
- समवायांगसूत्रसटीक। सम. . जैसे हाथी का पलाण हाथी ही उठा सकते हैं, गधे नहीं, वैसे ही घोर ब्रह्मचर्यव्रत का शूरपुरुष ही पालन कर सकते हैं; कायर नहीं । 281. अप्रमादी साधक
गुतिदिए गुत्त बम्भयारी, सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1267]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 133