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________________ ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले साधक तप-संयम और शील- सदाचार का घात-उपघात करनेवाली कथाएँ न कहें, न सुनें और न ही उन्का मन में चिन्तन करें । 275. वही निर्ग्रन्थ ति भत्त पाण भोयणभोई से णिग्गंथे । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1264] आचारांग 2/3/15 जो आवश्यकता से अधिक भोजन नहीं करता है, वही ब्रह्मचर्य का साधक सच्चा निर्ग्रन्थ है । 276. ब्रह्मचारी का व्यवहार तव-संयम-बंभचेर घातोवघातियाई अणुचरमाणेणं बंभचेरं ण चक्खुसा, ण मणसा ण वयसा पत्थेयव्वाइं पावकम्माई । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1264] प्रश्नव्याकरण 2/9/27 जिन व्यवहारों से ब्रह्मचर्य और तप - नियम का नाश - विनाश होता है, उन्हें ब्रह्मचारी न नेत्रों से देखें, न मन से सोचें और न उनके सम्बन्ध ' में वचन से कुछ बोले तथा न पापमय कार्यों की कामना करे । 277. ब्रह्मचारी का कार्यकलाप तव - संजम - बंभचेर घातोवघातियाई अणुचरमाणेणं बंभचेरं ण तातिं समणेण लब्भादट्टु ण कहेउं णवि सुमरिडं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1264] प्रश्नव्याकरण 2/9/27 जो कार्य - व्यवहार तप-संयम और सदाचार का घात - उपघात करनेवाले हैं, उन्हें ब्रह्मचर्यपालक साधक नहीं देखे, इनसे सम्बन्धित वार्तालाप नहीं करे और पूर्वकाल में जो देखे सुने हों; उनका स्मरण भी नहीं करे । - अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 132 D
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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